सही प्रमाण पत्र होने के बावजूद फर्जी घोषित शिक्षक, शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

Written by Subhash Rajak

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अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ।सिलाव प्रखंड में शिक्षा विभाग द्वारा जारी की गई 127 शिक्षकों की फर्जी सूची ने न केवल कई शिक्षकों की मानसिक और आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी गहरा आघात पहुँचाया है। चौंकाने वाली बात यह है कि सूची में शामिल कई शिक्षक पहले ही अपने प्रमाण पत्रों की जांच करा चुके हैं और जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) द्वारा उन्हें सत्यापित और सही घोषित किया जा चुका है।

फर्जी साबित करने का दोहरा रवैया
उक्त सूची में उत्क्रमित मध्य विद्यालय दरियासराय के शिक्षक रोहित कुमार का नाम भी शामिल है, जिन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में उनके वेतन का भुगतान बिना किसी जांच के रोक दिया गया था। उन्होंने विभाग से प्रमाण पत्रों की जांच कराने का आग्रह किया, जिसके बाद उच्च अधिकारियों के निर्देश पर जांच हुई और उन्हें सही ठहराते हुए प्रमाण पत्र जारी किया गया। इसके बावजूद ईपीएफ की राशि अब तक उनके खाते में नहीं डाली गई।

सही पाए गए शिक्षक फिर फर्जी क्यों?
शिक्षक रोहित कुमार ने बताया कि विभाग ने धनंजय कुमार उर्फ गुड्डू द्वारा सौंपी गई सूची पर आंख मूंदकर भरोसा किया। कुछ ही महीनों बाद जिन शिक्षकों को पहले सही घोषित किया गया था, उन्हें फिर से फर्जी बता कर वेतन रोक दिया गया। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप पर दोबारा जांच हुई और वेतन चालू हुआ। अब पांच वर्षों के बाद फिर वही शिक्षक फर्जी घोषित किए जा रहे हैं।

जांच अधिकारी का पल्ला झाड़ना और प्रशासनिक भ्रम
रोहित कुमार का कहना है कि जांच रिपोर्ट में उन्हें सही ठहराया गया है, लेकिन जब सूची से नाम हटाने की बात की जाती है तो जांच पदाधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि “हमने जो सही था, लिखा है। नाम हटाना मेरी जिम्मेदारी नहीं।”

जिनके नाम सूची में हैं, वे पहले ही हो चुके हैं सत्यापित
सूची के क्रम संख्या 4 पर गौरव रंजन, 11 पर बंटी प्रसाद और 13 पर रोहित कुमार को जांच में सही पाया गया है। वहीं क्रम संख्या 5 पर दानिश जमाल, 14 पर मकसूद आलम और 45 पर शवाना तलत जैसे शिक्षकों का रिजल्ट “उर्दू स्पेशल” श्रेणी में होने के कारण “रिजल्ट नॉट फाउंड” बताया गया था, लेकिन बाद में जांच कर इन्हें भी सही ठहराया गया।

सूचना दिए बिना कार्रवाई, न्याय का हनन
शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि जिन शिकायतों के आधार पर लोकायुक्त द्वारा नियोजन रद्द करने की सिफारिश की गई, उन मामलों में संबंधित शिक्षकों को न तो कोई सूचना दी गई, न ही पक्ष रखने का मौका मिला। जब वेतन बंद हुआ तब पता चला कि उन्हें फर्जी घोषित किया गया है।

सही प्रमाण पत्र फिर भी असुरक्षा का माहौल
कई शिक्षक अब दूसरे भर्ती परीक्षाओं में भाग लेकर अन्य स्थानों पर कार्य कर रहे हैं, जहाँ उनके प्रमाण पत्र स्वीकार किए गए हैं। रोहित कुमार ने बताया कि उन्होंने सक्षमता 1 और प्रधान शिक्षक की काउंसलिंग में भी भाग लिया था, जहाँ उनके दस्तावेज सही पाए गए।

न्याय न मिलने पर न्यायालय की शरण लेंगे शिक्षक
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही सही शिक्षकों के नाम फर्जी सूची से नहीं हटाए गए, तो शिक्षक न्यायालय की शरण लेंगे।

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