ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का इतिहास और महत्व

Written by Subhash Rajak

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नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की, जिसे “ओदंतपुरी महाविहार” के नाम से भी जाना जाता है, यह  प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्रों में से एक था। 

और इसका ऐतिहासिक और शैक्षिक महत्व आज भी अद्वितीय है। अतः लेख को आगे बढ़ाते हैं और आपको एक विस्तृत जानकारी देते हैं |

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय स्थापना और संस्थापक

Contents

दोस्तों आपको बता दें की ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा गोपाल ने की थी, और उनका मुख्य उद्देश्य  शिक्षा और बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित करना था |

राजा गोपाल ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस विश्वविद्यालय को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाया।

विश्वविद्यालय का ढांचा और व्यवस्था

अगर इसकी ढांचा और व्यवस्था की बात करें तो आपको ये जानना चाहिए की ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का ढांचा और शिक्षा प्रणाली अत्यधिक संगठित थी। यह हिरण्य प्रभात पर्वत और पंचानन नदी के किनारे स्थित था। 

विश्वविद्यालय में लगभग 12,000 छात्र और शिक्षक थे। यहां बौद्ध धर्म के साथ-साथ विभिन्न विषयों जैसे आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, तंत्र, और अन्य विज्ञानों की शिक्षा दी जाती थी।

शिक्षा प्रणाली और कोर्स

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय में शिक्षा की उच्च गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कई तरह के कोर्स और शिक्षण विधियाँ विकसित की गई थीं। 

बौद्ध धर्म के अध्ययन के साथ-साथ यहां पर तंत्र, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र और गणित जैसे विषयों पर भी शिक्षा दी जाती थी। शिक्षकों में कई प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और विद्वान शामिल थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता से छात्रों को शिक्षित किया।

प्रमुख शिक्षकों और छात्रों का परिचय

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के प्रमुख शिक्षकों में से एक आचार्य श्री गंगा थे, जिन्होंने तंत्र और बौद्ध धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों में विभिन्न देशों के छात्र शामिल थे, जो यहां से शिक्षा प्राप्त कर अपने-अपने देशों में ज्ञान का प्रसार करते थे।

विश्वविद्यालय का पतन

12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के हमले के कारण ओदंतपुरी का पतन हुआ। खिलजी ने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया 

और यहां की बहुमूल्य पुस्तकों और शिक्षा के केंद्रों को जलाकर राख कर दिया। इस आक्रमण के बाद ओदंतपुरी कभी अपनी पुरानी गरिमा को वापस नहीं पा सका।

संरक्षण और पुनर्निर्माण के प्रयास

हालांकि ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का पतन हो गया था, फिर भी इसके अवशेष आज भी बिहार शरीफ में देखे जा सकते हैं। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अन्य संस्थाएँ इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण और पुनर्निर्माण के लिए प्रयासरत हैं।

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय अपने समय में शिक्षा और विद्या का एक प्रमुख केंद्र था। यहां पर बौद्ध धर्म, तंत्र, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र और गणित जैसे विषयों पर उच्च शिक्षा दी जाती थी। 

इसकी शिक्षा प्रणाली और विद्वानों की गुणवत्ता ने इसे प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में से एक बनाया।

एक पर्यटक की दृष्टि से कैसे घूमें?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के अवशेष देखने के लिए बिहार शरीफ एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ आने के लिए आप पटना से सड़क या रेल मार्ग द्वारा आ सकते हैं। 

पटना से बिहार शरीफ की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। यहां पर स्थानीय गाइड की मदद से आप विश्वविद्यालय के अवशेष और आसपास के अन्य ऐतिहासिक स्थल देख सकते हैं।

वहां क्या-क्या खास देखने को मिलेगा?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के अवशेषों में प्राचीन विहारों, स्तूपों और शिक्षा केंद्रों के अवशेष शामिल हैं। इसके अलावा, यहां के आसपास के क्षेत्र में कई बौद्ध स्थलों और मंदिरों को भी देखा जा सकता है। 

बिहार शरीफ में आप पुराने किले, मस्जिद और दरगाह भी देख सकते हैं, जो इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं।

निष्कर्ष

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय ने प्राचीन भारत के शिक्षा और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अध्ययन और संरक्षण से हमें प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली और बौद्ध धर्म के विकास को समझने में मदद मिलती है। 

ओदंतपुरी का इतिहास हमें यह सिखाता है कि शिक्षा और ज्ञान की धरोहर को संरक्षित करना कितना महत्वपूर्ण है। आशा करते हैं की आपको हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा 

अतः इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न यदि आपके मन में है या हमे कुछ हमें बताना चाहते हैं तो हमारे कमेन्ट बॉक्स से जुड़ सकते हैं |

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का क्या महत्व है?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जो बौद्ध धर्म, तंत्र, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र और गणित जैसे विषयों की उच्च शिक्षा प्रदान करता था।

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की थी?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना 7वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा गोपाल ने की थी।

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का पतन कब और कैसे हुआ?

12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के हमले के कारण ओदंतपुरी विश्वविद्यालय का पतन हुआ। खिलजी ने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया और बहुमूल्य पुस्तकों और शिक्षा केंद्रों को जला दिया।

एक पर्यटक की दृष्टि से ओदंतपुरी विश्वविद्यालय कैसे घूमे?

बिहार शरीफ स्थित ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के अवशेष देखने के लिए आप पटना से सड़क या रेल मार्ग द्वारा आ सकते हैं। स्थानीय गाइड की मदद से आप विश्वविद्यालय के अवशेष और आसपास के अन्य ऐतिहासिक स्थल देख सकते हैं।

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय में क्या-क्या देखने को मिलेगा?

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के अवशेषों में प्राचीन विहारों, स्तूपों और शिक्षा केंद्रों के अवशेष शामिल हैं। इसके अलावा, यहां के आसपास के क्षेत्र में कई बौद्ध स्थलों और मंदिरों को भी देखा जा सकता है।

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