ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल | Hiuen Tsang Memorial Hall 

Written by Subhash Rajak

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नमस्कार दोस्तों | आज हम चर्चा करने जा रहे हैं ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल (Hieun Tsang Memorial Hall) के बारे में जो बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित हैं | 

इस मेमोरियल हॉल की स्थापना 1984 में की गई थी | यह हॉल नालंदा विश्वविद्यालय के खँड़रों से लगभग 2-3 km की दूरी में स्थित हैं | यह नालंदा का सबसे आकर्षण पर्यटन स्थलों में से एक हैं |

यह मेमोरियल हॉल चीनी यात्री विद्वान भिक्षु ह्वेन त्सांग (Xuanzang नाम से भी जाना जाता हैं) की याद में बनाया गया था , जो नालंदा के छात्र थे और बाद में नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक बने | 

यह लोकप्रिय चीनी यात्री 630 ईस्वी (सातवीं सदी ) में भारत आए थे और इन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक बोद्ध धर्म का अध्ययन किया था| 

वह भारत में करीब 15 वर्षों तक रहे थे | तो चलिए आपको ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल का एक विस्तृत जानकारी देते हैं ताकि आप जब विज़िट करो तो आपको कोई परेशानी न हो |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल से जुड़ी जानकारियाँ 

Contents

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल, बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित हैं जो नालंदा विश्वविद्यालय के खँड़रों से लगभग 2 किमी. की दूरी पर हैं | 

यह काफी प्रसिद्ध और आकर्षण का केंद्र हैं | यह हॉल ह्वेन त्सांग की याद में बनाया गया हैं | इस मेमोरियल हॉल का निर्माण सन्न 1957 में भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किया गया था और सन्न 1984 में पूरा हुआ | 

ह्वेन त्सांग ने अपने प्रवास के दौरान कई दस्तावेज एकत्र किए जो बोद्ध लेखन के इतिहास का मुख्य स्रोत हैं और यह अभी भी इस मेमोरियल हॉल में अच्छी तरह से संरक्षित हैं | 

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल का महत्व 

चलिए इस लेख को आगे बढ़ाते हैं और जानते हैं आखिर ये मेमोरियल हॉल भारत के इतिहास के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ? 

आपको बता दें यह ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल, ह्वेन त्सांग की याद में बनाया गया था चूंकि ह्वेन त्सांग एक प्रख्यात चीनी बौद्ध भिक्षु और विद्वान थे 

तथा उनका व्यक्तित्व साहसी, ज्ञानपिपासु और धार्मिक था। वे शिक्षा और ज्ञान की खोज में भारत आए और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

उन्होंने भारत की यात्रा करके यहां के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का विस्तृत वर्णन किया। 

यही वजह है की मेमोरियल हॉल सांस्कृतिक, एतिहासिक और शैक्षिक महत्व रखता हैं | और एक तरह से यह हॉल ह्वेन त्सांग के कार्यों का सम्मान करता हैं |

1. सांस्कृतिक आदान – प्रदान 

यह मेमोरियल हॉल भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान – प्रदान और समझ का प्रतीक हैं जो सीखने और बौद्धिक अन्वेषण के केंद्र के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय के महत्व पर प्रकाश डालता हैं | 

 2. शैक्षिक केंद्र के रूप में 

यह मेमोरियल हॉल एक शैक्षिक केंद्र के रूप में हैं जहां ह्वेन त्सांग के कार्यों , बोद्ध अध्ययन और सांस्कृतिक आदान – प्रदान में रुचि रखने वाले विद्वान और छात्रों के लिए एक शैक्षिक केंद्र के रूप में हैं | 

3. वास्तुकला महत्व 

इस हॉल का डिजाइन पारंपरिक चीनी और भारतीय स्थापत्य शैली का मिश्रण हैं जो सांस्कृतिक प्रभावों का मिश्रण को प्रदर्शित करता हैं |

4. इतिहास का संरक्षण 

यह मेमोरियल हॉल ह्वेन त्सांग की यात्रा का इतिहास, बोद्ध विद्वता में उनके योगदान और नालंदा विश्वविद्यालय की संस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता हैं |

5. प्रेरणा 

यह मेमोरियल हॉल आने वाले पीढ़ियों को ह्वेन त्सांग के नक्शेकदम पर चलते हुए ज्ञान, समझ और सांस्कृतिक आदान- प्रदान के लिए प्रेरित करता हैं |

6. दोस्ती का प्रतीक 

यह भारत और चीन के बीच दोस्ती और आपसी संबंध का प्रतीक हैं जिस वजह से दोनों देशों के बीच अधिक समझ और सहयोग को बढ़ावा मिलता हैं |

7. आध्यात्मिक महत्व

यह मेमोरियल हॉल आध्यात्मिक साधकों और बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों के लिए एक शांतिपूर्ण और चिंतनशील स्थान के रूप में कार्य करता है।

8.  कलाकृतियों का संरक्षण

इस मेमोरियल हॉल में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए और नालंदा के इतिहास से संबंधित मूर्तियां, पेंटिंग और कई सारी प्रदर्शनियां हैं। 

बौद्ध इतिहास में नालंदा के महत्व को उजागर करते हुए बौद्ध कला, वास्तुकला और शिक्षाओं को संरक्षित और प्रदर्शित करता है।

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल क्यों फेमस है?

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल  प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु, विद्वान और यात्री ह्वेन त्सांग के जीवन और कार्यों का सम्मान करता है| तो चलिए इस लेख को आगे बढ़ाते हैं और इसी प्रसिद्धताओं के बारे में चर्चा करते हैं –

यह हॉल का संबंध नालंदा विश्वविद्यालय  के साथ हैं क्योंकि ह्वेन त्सांग इसी विश्वविद्यालय मे बोद्ध धर्म का अध्ययन और ज्ञान प्राप्त करने आए थे |

यह मेमोरियल हॉल एक तीर्थ स्थल के रूप में हैं | यह बौद्धों और ह्वेन त्सांग के कार्यों और नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिए एक तीर्थ स्थल है।

यह हॉल सांस्कृतिक पर्यटन और शिक्षा को बढ़ावा देते हुए दुनिया भर से पर्यटकों और विद्वानों को आकर्षित करता है।

इस मेमोरियल हॉल में कई प्रकार की मूर्तियाँ और चित्रों को प्रदर्शित की गई  हैं जो  ह्वेन त्सांग की यात्रा के साथ – साथ भारत और चीन की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत को दर्शाता हैं  | आइए जानते है इस हॉल की मूर्तियाँ और चित्रों  के बारे में –

मूर्तियाँ 

यहाँ ह्वेन त्सांग की एक सुन्दर प्रतिमा हैं जो पवित्रता और शांति का प्रतीक हैं |  ह्वेन त्सांग को बैठे हुए आसान में दर्शाया गया हैं जिसमे उनके पैर कमल की स्थिति में क्रॉस किए हुए हैं 

जिसे पद्मासन कहा जाता हैं जिससे हमे यह प्रतीत होता हैं जैसे कि वो ध्यान और चिंतन कर रहे हैं | यहाँ बुद्ध प्रतिमाएं भी उपस्थित हैं जो अलग-अलग मुद्राओं में देखने को मिलती हैं | 

भारतीय और चीनी मूर्तियाँ भी हैं जो पौराणिक कथाओं और संस्कृति को दर्शाती हैं |

चित्रों 

इस मेमोरियल हॉल में ह्वेन त्सांग की चीन से भारत तक की यात्रा को दर्शाने के लिए विभिन्न प्रकार के चित्रों में प्रदर्शित किया गया हैं | 

बोद्ध शिक्षाओं, कहानियाँ और रूपांकनों को दर्शाने वाली चित्रकलाएं प्रस्तुत हैं | भारत और चीन की कलात्मक शैलीयो और परंपराओं को दर्शाने वाली चित्रकलाएं हैं | 

ह्वेन त्सांग के लेखन के चित्र, जिसमें उनका प्रसिद्ध यात्रा वृतांत, “सी-यू-की” (पश्चिमी क्षेत्रों का रिकॉर्ड) भी शामिल है।

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल वास्तुकला

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल की वास्तुकला काफी मंत्रमुग्ध करने वाला हैं और यहाँ का वातावरण काफी शांतिपूर्ण हैं | इस मेमोरियल हॉल की वास्तुकला भारतीय और चीनी शैलीयो का मिश्रण हैं ,

जो सांस्कृतिक आदान प्रदान और विचारों के संलयन को दर्शाती हैं| यहाँ का मुख्य हॉल काफी बड़ा और आयताकार आकार का हैं जिसमे मूर्तियाँ , पेंटिंग और कई प्रदर्शनियाँ हैं | 

यहाँ कई परतों वाली छत हैं जो चीनी पगोडा से प्रेरित हैं | विशिष्ट चीनी शैली से निर्मित यह मेमोरियल हॉल चीनी यात्रियों के जीवन और समय को समझने के लिए एक प्रमुख जगह हैं |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल कैसे पहुंचे ?

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल, बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित हैं और इस मेमोरियल हॉल पहुँचने से पहले आपको नालंदा आना होगा जिसके लिए आप हवाई मार्ग , ट्रेन या सड़क मार्ग का चयन कर सकते हैं |

नालंदा पहुँचने के बाद आप टैक्सी या बस के माध्यम से इस मेमोरियल हॉल तक पहुच सकते हैं , यह हॉल नालंदा विश्वविद्यालय के खँड़रों से करीब 2-3 km की दूरी में स्थित हैं |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल की यात्रा करने का सर्वोत्तम समय

प्रिय पर्यटकों इस मेमोरियल हॉल की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय ऑक्टोबर से मार्च महीने के बीच हैं हालांकि आप अपने अनुसार भी यहाँ आ सकते हैं लेकिन ऑक्टोबर से मार्च महीने के बीच सबसे

अनुकूल वातावरण साबित होगा आपलोगों के लिए | क्योंकि इस समय में वातावरण काफी सुखदायक रहता हैं |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल टिकट और समय

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल की टिकट प्राइस काफी बजट फ़्रेंडली हैं आप सभी को जान कर हैरानी होगी की इसकी मूल्य मात्र 30 रुपये हैं 

और इस हॉल के खुलने का समय 9:00 बजे सुबह को हैं और बंद होने का समय 5:00 बजे शाम को हैं | यह हॉल सप्ताह में सातों दिन खुला रहता हैं | (सोमवार – रविवार)

पर्यटकों के लिए सुझाव

प्रिय पर्यटकों आप सभी के इस हॉल की यात्रा के लिए कुछ सुझाव –

1. आप एक लोकल गाइड किराये पर ले सकते जिसकी मदद से आप इस हॉल के के बारे में काफी विस्तार से समझ सकेगे |

2. इस हॉल के आसपास के जगहों का भी भ्रमण करें जिससे आपको इससे जुड़ी इतिहास के बारे में पता चलेगा |

3. आप आराम से अपना समय ले के इस हॉल और इस हॉल के आसपास वालों क्षेत्रों को घूम सकते हैं |

4. बिहार के स्थानीय व्यंजनों का चयन करे जैसे लिट्टी चोक, जलेबी , मसूर की दाल इत्यादि |

5. अपने समान की सुरक्षा स्वयं करे |

ह्वेन त्सांग नालंदा विश्वविद्यालय क्यों आए थे ?

ह्वेन त्सांग नालंदा  विश्वविद्यालय बोद्ध धर्म का ज्ञान एकत्रित करने आए थे |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल की स्थापना कब हुई थी?

 इस हॉल की स्थापना 1984 में हुई थी |

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल किसकी याद में बनाया गया?

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल चीनी यात्री ह्वेन त्सांग की याद में बनाया गया जो भारत आए थे बोद्ध धर्म का आध्यान करने के लिए |

ह्वेन त्सांग कितने वर्षों तक भारत में रहे?

 15 वर्षों तक |

ह्वेन त्सांग किस विश्वविद्यालय के छात्र थे?

 ह्वेन त्सांग प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र थे |

निष्कर्ष 

ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल भारत के बिहार के नालंदा में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मेमोरियल हॉल भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक प्रमाण है, 

जो आने वाले पीढ़ियों को ज्ञान, समझ और सहयोग के लिए प्रेरित करता है। हम आशा करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा और इस लेख से अपने इस प्रसिद्ध ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल के बारे मे जाना होगा | 

अतः आपके मन मे किसी भी प्रकार का प्रश्न या आप हमे कुछ बताना चाहते हो तो हमारे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से जुड़ सकते हैं

धन्यवाद

आपका दिन शुभ हो ! 



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