नालंदा की धरती पर फिर बने नौ मंजिला ग्रंथागार, ज्ञान के पुनर्जागरण की दिशा में ऐतिहासिक पहल

Written by Subhash Rajak

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अपना नालंदा संवाददाता
राजगीर। प्राचीन ज्ञान परंपरा की गौरवशाली विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल शुरू हुई है। नालंदा मेमोरियल फाउंडेशन और ‘प्रकृति’ संस्था द्वारा ज्ञानभूमि नालंदा में नौ मंजिला भव्य ग्रंथागार के पुनर्निर्माण की मांग जोर पकड़ रही है। इस अभियान को देश-विदेश से समर्थन भी मिल रहा है। प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू और जल संरक्षण आंदोलन के प्रणेता डॉ. राजेन्द्र सिंह ने इस प्रयास को एक आवश्यक और प्रेरणादायी कदम बताया है।

फाउंडेशन के अध्यक्ष नीरज कुमार और प्रकृति संस्था के अध्यक्ष नवेन्दु झा एवं सचिव राम विलास ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ज्ञापन भेजकर यह मांग की है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की भांति एक नया नौ मंजिला ग्रंथागार बनाया जाए।

उन्होंने बताया कि इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि नालंदा विश्वविद्यालय में तीन अद्भुत ग्रंथागार – रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक थे, जिनमें लगभग नौ मिलियन से अधिक पुस्तकें और पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं। इन ग्रंथालयों में धर्म, विज्ञान, खगोलशास्त्र, मनोविज्ञान, चिकित्सा, सैन्य नीति, वास्तुकला, दर्शन, गणित, भाषा विज्ञान जैसे विविध विषयों का अद्वितीय ज्ञान संग्रहित था।

फाउंडेशन ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित नया ग्रंथागार केवल ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक नहीं होगा, बल्कि यह वैश्विक मुद्दों – जैसे जलवायु परिवर्तन, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक विषमता और नैतिक मूल्यों के ह्रास – पर शोध और समाधान का केंद्र बनेगा। यह संरचना नालंदा की बौद्धिक चेतना को आधुनिक संदर्भ में पुनर्स्थापित करेगी।

मोरारी बापू ने इसे “ज्ञान और संस्कृति के पुनर्जागरण का स्तंभ” बताते हुए समर्थन दिया है, वहीं जलपुरुष डॉ. राजेन्द्र सिंह ने इसे “आधुनिक भारत की बौद्धिक आवश्यकता” करार दिया है।

अभियान से जुड़े आयोजकों ने बिहार और भारत के जनप्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों से इस प्रयास को व्यापक समर्थन देने की अपील की है। उनका कहना है कि यह समय है जब हम मिलकर अपनी प्राचीन विरासत को आधुनिक स्वरूप में पुनर्जीवित करें और नालंदा को एक बार फिर विश्वगुरु की भूमिका में प्रतिष्ठित करें।

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