“छोटे मुखिया के कांग्रेस में शामिल होने से नालंदा की सियासत गरमाई, गुटबाजी खुलकर आई सामने”

Written by Subhash Rajak

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अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ।नालंदा की राजनीति में गुरुवार को बड़ा घटनाक्रम सामने आया, जब नालंदा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। यह कार्यक्रम बिहारशरीफ के राजेंद्र आश्रम में आयोजित किया गया, जो आम दिनों में वीरान पड़ा रहता है, लेकिन गुरुवार को वहां भारी भीड़ उमड़ी। आश्रम परिसर के बाहर मोटरसाइकिलों की कतारें इस बात का प्रमाण थीं कि छोटे मुखिया के साथ बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे।

कांग्रेस में बड़े नेताओं की मौजूदगी, लेकिन जिला नेतृत्व गायब

इस अवसर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव सह बिहार प्रभारी देवेंद्र यादव, पूर्व जिला अध्यक्ष दिलीप कुमार और पूर्व विधायक रवि ज्योति जैसे वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। कांग्रेस नेताओं ने छोटे मुखिया के पार्टी में शामिल होने को मजबूती देने वाला कदम बताया और कहा कि इससे नालंदा विधानसभा सीट पर जदयू को कड़ी टक्कर दी जाएगी।

हालांकि, कार्यक्रम में एक बड़ी खामी सबके सामने आ गई। यह आयोजन कांग्रेस जिला कार्यालय में प्रस्तावित था, लेकिन जिला कार्यालय के मुख्य कक्ष में ताला लटका मिला। न ही जिला अध्यक्ष नजर आए और न ही नवगठित जिला कमेटी का कोई सदस्य। उनकी अनुपस्थिति ने साफ संकेत दिया कि पार्टी के अंदर गहरी गुटबाजी चल रही है।

कांग्रेस के भीतर असंतोष, ‘पैराशूट नेताओं’ का विरोध

कांग्रेस की स्थानीय इकाई के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि पार्टी में ऐसे नेताओं को शामिल किया जा रहा है, जो कभी राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ बयान देते थे। उन्होंने कहा कि पार्टी में ‘पैराशूट नेताओं’ को लाने का प्रयास जमीनी कार्यकर्ताओं के हौसले को कमजोर करता है।
उनका कहना था, “कांग्रेस पार्टी हमेशा निष्ठावान और ईमानदार कार्यकर्ताओं का सम्मान करती आई है। ऐसे लोग जो अवसरवाद के चलते बार-बार दल बदलते हैं, उन्हें प्रमुखता देना पार्टी की सेहत के लिए घातक साबित हो सकता है। इसी वजह से जिला अध्यक्ष और पूरी कमेटी ने इस कार्यक्रम से दूरी बना ली।”

छोटे मुखिया का राजनीतिक सफर

कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया वर्ष 2015 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नालंदा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके समर्थन में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा की थी, बावजूद इसके वे चुनाव हार गए।
वर्ष 2020 में जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तब उन्होंने एक अन्य पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी हार का सामना करना पड़ा। अब छोटे मुखिया ने कांग्रेस में नई राजनीतिक पारी शुरू की है।

टिकट को लेकर चर्चाएं तेज

अब नालंदा की राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी?
क्या पार्टी अपने पुराने, निष्ठावान और जमीनी कार्यकर्ताओं जैसे रणधीर रंजन मंटू, अजीत कुमार, अखिलेश कुशवाहा और अनिल कुमार पत्रकार को प्राथमिकता देगी या फिर नए शामिल हुए ‘पैराशूट नेता’ छोटे मुखिया पर भरोसा जताएगी?
यह भी देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस हाईकमान इस गुटबाजी को किस प्रकार नियंत्रित करता है और किसे टिकट देकर मैदान में उतारता है। फिलहाल कार्यकर्ताओं में इस मुद्दे को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं।

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