कार्बनिक खेतीः नालंदा के किसानों की मृदा के लिए वरदान

Written by Subhash Rajak

Updated on:

आलेख -राजीव पद्भूषण, अचिन कुमार, बीर बहादुर सिंह, संजीव कुमार एवं नीरु कुमारी
नालंदा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय (नालंदा)

यह लेख कार्बन खेती की शुरुआत की ओर कदम बढ़ा रहे नालंदा की भूमिका पर चर्चा करता है। जब हम ‘कार्बन’ शब्द सुनते हैं, तो हमारे दिमाग में जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैस के बारे में विचार आते हैं। किंतु क्या कभी हमने सोचा है कि यही कार्बन, जो आज पर्यावरण संकट का कारण बनता प्रतीत होता है, वही कृषि की उर्वरता और किसान की समृद्धि का आधार भी बन सकता है? जी हाँ, ‘कार्बन खेती’ इसी दिशा में एक अभिनव, आशाजनक और पुनर्योजी कदम है। क्या है कार्बन खेती जिसकी चर्चा बहुत है?

कार्बन खेती केवल एक तकनीकी अवधारणा नहीं, बल्कि धरती माँ को पुनः जीवन देने का एक समर्पित प्रयास है। इस पद्धति का उद्देश्य मिट्टी और वनस्पति में कार्बन का स्थिरीकरण कर उसे दीर्घकाल तक संचित रखना है, जिससे वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाया जा सके और उसे खेत की उर्वरता में परिवर्तित किया जा सके। दिसंबर 2021 में फ्रैंस टिम्मरमैन ने कहा था- ‘कार्बन खेती किसानों, वनवासियों और अन्य भूमि प्रबंधकों को हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के सच्चे संरक्षक और जलवायु के चरवाहे बनने की अनुमति देती है। यह कथन इस कृषि पद्धति की व्यापकता और महत्ता को सारगर्भित रूप में दर्शाता है। आज की कृषि प्रणाली में मनुष्य अधिक उत्पादन की होड़ में आकर प्रकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा हैं, असंतुलित उर्वरकों और रासायनिक दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग से न केवल मिट्टी के सूक्ष्मजीव समाप्त हो रहे हैं, बल्कि जल और वायु भी विषैले होते जा रहे हैं। ऐसे में कार्बन खेती न केवल एक समाधान है, बल्कि धरती की गोद को फिर से हरित और समृद्ध करने की एक नयी शुरुआत है।

इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए कार्बन खेती के मुख्य पहलूओ जैसे कि मीचेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसो के उत्सर्जन को कम करना; कवर क्रॉपिंग, कम जुताई और बेहतर पोषक तत्व प्रबंधन जैसी पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना; मिट्टी की उर्वरता, जलधारण क्षमता और जैव विविधता में सुधार करना; कार्बन क्रेडिट के माध्यम से अतिरिक्त आय की संभावना उत्पन्न करना आदि।

कुछ तरीको को अपनाकर कृषक खेती में कार्बन को बढ़ा सकते है जैसे कि वर्ष में कम से कम एक बार दलहनी फसलों की बुआई अवश्य करें, जो कि नत्रजन स्थिरीकरण करने का कार्य करती है, मुख्य फसलों के बीच कवर फसलें लगाने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और कार्बन अवशोषण में वृद्धि हो सकती है, कम जुताई करके मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बनाए रखना, खेत में खेतों में वृक्षों का समावेश कर कृषि वानिकी को अपनाए, ग्वार, ढेचा व सनई आदि का प्रयोग हरी खाद हेतु करें, फसल अवशेष प्रबंधन करे, 2-३ वर्ष के अंतराल पर खेतो में गोबर की खाद, कम्पोस्ट और वर्मिकम्पोस्ट जरूर डाले और दलहनी और मोटे अनाजों के बीज को राइजोबियम एवं एजेंटोबेक्टर जीवाणु से उपचारित करने के बाद ही बोए ।

कार्बन खेती के लाभः कार्बन खेती एक सदाबहार कृषि पद्धति है, जो पर्यावरण जल व वायु को शुद्ध कर, भूमि को पुनः प्राकृतिक स्वरूप प्रदान करती है; जल व वायु की धारण क्षमता बढ़ती है; रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से खेती की लागत में कमी, फसल की गुणवत्ता में वृद्धिः जैव विविधता और कृषि मित्र जीवों की संख्या में वृद्धि, प्रदूषण में कमी; किसान कार्बन बाज़ारों में भाग लेकर और कार्बन क्रेडिट बेचकर अतिरिक्त आय उत्पन्न कर सकते हैं।

निष्कर्ष: आज का समय मांग करता है कि हम कृषि को केवल भोजन उत्पादन की प्रक्रिया न मानकर उसे धरती और प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करने की एक कला समझें। यदि किसान भाई इसे अपनाएं, तो न केवल उनका खेत मुस्कराएगा, बल्कि उनका भविष्य भी हरियाली से सराबोर हो जाएगा। यह पद्धति एक समर्पण है धरती के प्रति, और एक उत्तरदायित्व है आने वाले कल के लिए।

‘कार्बन खेती-एक नया सूर्योदय, एक नई हरियाली और एक नई आशा!”

Leave a Comment