अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ।अखिल भारतीय पान महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजीनियर आईपी गुप्ता ने स्पष्ट किया है कि “हमारी जाति पान है, तांती और ततंवा केवल उपाधि या टायटल हैं। यह कोई अलग जाति नहीं है।” उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा प्रकाशित 1950 की अनुसूचित जातियों की सूची में ‘पान’ जाति को (क्रम संख्या 18 पर) अधिसूचित किया गया था, जिसे 1967 में संशोधित करके (क्रम संख्या 20 पर) ‘पान/स्वांसी’ नाम से अंकित किया गया।
इंजीनियर गुप्ता ने अनेक आयोगों, शोध संस्थानों और सरकारी दस्तावेजों के हवाले से यह भी कहा कि तांती/ततंवा का पान जाति से संबंध ऐतिहासिक, सामाजिक और विधिक रूप से सिद्ध है। उनके अनुसार:
- पिछड़ा वर्ग आयोग की पहली रिपोर्ट के अध्याय 11, अनुच्छेद 11(3) में ‘पान तांती’ को एक ही जाति माना गया है।
- बिहार विधानसभा की वर्ष 1978 और 1980 की रिपोर्टों में भी ‘ताती’ को पान जाति का पर्याय मानते हुए अनुसूचित जाति के लाभ का पात्र बताया गया है।
- 1967 में संसद में विधेयक संख्या 119(बी) के अंतर्गत पान/स्वांसी/ताती/ततंवा को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव आया था, जो अब तक लंबित है।
- काका कालेलकर आयोग और झारखंड सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने भी पान, ताती, ततंवा को एक ही जाति माना है।
- एच.एच. रिजले की पुस्तक “The Tribes and Castes of Bengal” में भी पान के पर्यायवाची के रूप में ताती/ततंवा का उल्लेख है।
- ए.एन. सिन्हा संस्थान, पटना की शोध रिपोर्ट और बिहार राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा भी इस जातीय एकता को प्रमाणित करती हैं।
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी भारत सरकार से यह अनुशंसा की है कि ताती/ततंवा को पान के अंतर्गत अनुसूचित जाति की मान्यता दी जाए।
इंजीनियर गुप्ता ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार अनुसूचित जातियों से संबंधित कोई भी संशोधन केवल संसद द्वारा विधेयक पारित करके ही किया जा सकता है। राज्य सरकार इस विषय पर केवल सिफारिश कर सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में स्पष्ट है कि तकनीकी कारणों से राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश अगर रद्द होते हैं, तो उससे जाति के मौलिक अधिकार समाप्त नहीं होते।
उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा के हालिया बजट सत्र में इस विषय पर कुछ विधायकों द्वारा उठाई गई आवाज़ का तरीका तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण था, लेकिन प्रयास सराहनीय है। उन्होंने यह भी कहा कि तांती/ततंवा को सामाजिक पिछड़ेपन की बजाय अनुसूचित जाति पान के अंतर्गत जोड़ा जाना चाहिए।
उन्होंने भारत सरकार से यह माँग की कि 1967 की ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर संसद में जल्द से जल्द विधेयक लाया जाए और पान/तांती/ततंवा समाज को उसका संवैधानिक अधिकार दिलाया जाए।
समापन में उन्होंने कहा: “हम पान हैं, तांती और ततंवा हमारी उपाधि है। हमें हमारे अधिकार से वंचित रखना संविधान और सामाजिक न्याय दोनों के विरुद्ध है।”