राजीव पद्भूषण, अचिन कुमार एवं प्रेरणा रॉय
वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग
नालंदा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय (नालंदा), बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर
गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस), जिसे चटक चांदनी, झूठा सूरजमुखी या कांग्रेस घास के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत विषैला और आक्रामक खरपतवार है । जो खेती, मानव स्वास्थ्य और पशुधन के लिए गंभीर खतरा है। हाल ही मे नालंदा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय के वैज्ञानिकों ने “विकसित कृषि संकल्प अभियान” के अंतर्गत अस्थावां ब्लॉक का दौरा किया, और पाया कि गाजर घास, किसानों के खेतों, सड़कों के किनारों, सार्वजनिक स्थलों, रेलवे लाइनों और बस्तियों के आस-पास व्यापक रूप से फैल चुकी है।
इस लेख मे हम गाजर घास की पहचान, इसके दुष्प्रभाव और निदान के बारे मे विस्तृत चर्चा करेंगे, ताकि किसान भाई इससे होने वाले नुकसान से स्वयं को, अपने खेतों को और पशुधन को सुरक्षित रख सकें ।
गाजर घास की पहचान कैसे करें?
यह पौधा लगभग 1.5 मीटर तक ऊँचा होता है और इसकी पत्तियाँ गाजर की पत्तियों की तरह गहराई से कटी हुई होती हैं। इसमे सफेद रंग के छोटे-छोटे फूल छाते की तरह गुच्छों में लगे होते हैं, जो दूर से देखने पर साफ दिखाई देते हैं । इसके अलावा, इस घास में एक तीखी गंध होती है और इसका तना हल्के हरे रंग का व रोएंदार होता है ।
खेती पर इसका दुष्प्रभाव
गाजर घास का प्रसार बेहद तेज़ होता है, क्योंकि एक अकेला पौधा 5,000 से लेकर 25,000 तक बीज उत्पन्न कर सकता है और ये बीज 3–4 वर्षों तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। यह फसलों से मिट्टी के पोषक तत्वों पानी और सूर्य के प्रकाश को छीन लेती है, जिससे फसलों की पैदावार 40-80% तक कम आ सकती है। विशेष रूप से यह दलहन की जड़ों में गांठ बनने से रोकती है जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण बाधित हो सकता है।
मानव स्वास्थ्य पर खतरा
गाजर घास में मौजूद जहरीला रसायन पार्थेनिन त्वचा, सांस की बीमारियाँ, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा, ब्रोंकाइटिस और नजला पैदा कर सकता है । तथा यह नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर मानसिक तनाव या डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी पैदा कर सकता है।
पशुओं के लिए भी घातक
यह घास पशुओं के लिए बेहद जहरीली है। इस घास को खाने से पशुओं में मुंह की सूजन, त्वचा रोग और दूध उत्पादन में गिरावट होती है। दुधारू पशुओं का दूध कड़वा हो जाता है। लंबे समय तक सेवन करने से पशु की मौत भी हो सकती है।
नियंत्रण और रोकथाम के उपाय: गाजर घास के प्रभावी नियंत्रण और रोकथाम के लिए यांत्रिक, रासायनिक और जैविक उपाय अपनाए जा सकते हैं-
यांत्रिक उपाय के तहत पौधो को फूल आने से पहले दस्ताने पहनकर जड़ से उखाड़कर जला दें या 1-1.5 मीटर गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए।
सायनिक नियंत्रण के लिए खेतों में ग्लाइफोसेट, मेट्रिब्यूजिन, पेंडिमेथलीन, एट्राज़ीन जैसे खरपतवारनाशकों का छिड़काव करे। इसके अलावा, 20% नमक के घोल का छिड़काव भी एक प्रभावी और सस्ता विकल्प साबित होता है।
जैविक नियंत्रण में मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) का उपयोग अत्यंत कारगर होता है, क्योंकि यह कीट केवल गाजर घास को खाता है। साथ ही, खेतों में गेंदा, ढैंचा या ज्वार जैसे प्रतिस्पर्धी पौधे लगाकर इसके प्रसार को जा सकता है ।
जैविक खाद में उपयोग- ज़हर से ज़मीन के लिए ज़रिया
फूल आने से पहले इसे इकट्ठा करके गोबर, सूखी पत्तियों और अन्य जैविक पदार्थों के साथ मिलाकर कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट बनाएं। इससे बनी खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा गोबर खाद से दोगुनी होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसके अलावा, इसे हरी खाद के रूप मे उपयोग करे साथ ही साथ बायोगैस संयंत्रों में कच्चे माल के रूप में शामिल कर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष
गाजर घास का प्रसार, खेती, स्वास्थ्य और पशुधन के लिए एक गंभीर चुनौती है, हालांकि, यदि किसान समय रहते जागरूक होकर वैज्ञानिक तरीकों का अपनाकर इसे फूल आने से पहले ही नष्ट कर दे, तो इस विषैले खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है। साथ ही इसे जैविक खाद में बदलकर, हम अपने खेतों, स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।