“गुरु अर्जुन देव जी महाराज के शहीदी दिवस पर पैजाबा गुरुद्वारा बिहारशरीफ में व्याख्यानमाला,‘तेरा किया मीठा लागे’ पुस्तक का हुआ विमोचन”

Written by Subhash Rajak

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संजय कुमार
बिहारशरीफ(अपना नालंदा)।सिखों के पांचवें गुरु, शहीदों के सरताज श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज का 419वां शहीदी गुरुपर्व रविवार को बिहारशरीफ के गुरुद्वारा नानकशाही संगत पैजाबा, भराव पर बड़े श्रद्धा भाव और गरिमा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर धर्म प्रचार कमिटी, तख्त श्री हरिमंदिर साहिब, पटना के अध्यक्ष महेन्द्रपाल सिंह ढिल्लन की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित हुआ।

गुरुद्वारा परिसर में अटूट लंगर की व्यवस्था की गई थी। पटना से आए हजूरी रागी जत्था के भाई बिक्रम सिंह ने सुमधुर शब्द-कीर्तन से संगत को भावविभोर कर दिया। हजूरी कथा वाचक ज्ञानी सतनाम सिंह ने गुरु वाणी की व्याख्या करते हुए संगत को गुरु अर्जुन देव जी के जीवन और बलिदान से प्रेरित किया।

धर्म प्रचार कमिटी के अध्यक्ष महेन्द्रपाल सिंह ढिल्लन ने बताया कि सन् 1606 में मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन देव जी को भीषण यातनाएं दी गईं। उन्हें उबलते पानी में बैठाया गया, गर्म तवे पर बिठाया गया और सिर पर जलती रेत डाली गई। अंततः 30 मई को रावी नदी में स्नान की इच्छा प्रकट करने के बाद उन्होंने शहादत दी। यह बलिदान धर्म और मानवता की रक्षा के लिए था।

बिहार सिख फेडरेशन नालंदा के मीडिया प्रभारी राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी मानवीय मूल्यों, सेवा भावना और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक थे। मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होंने गुरु गद्दी संभाली और श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन कर उसे सभी धर्मों के संतों की वाणियों से समृद्ध किया।

बिहार सिख फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष त्रिलोक सिंह निषाद ने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी एक महान समाज सुधारक, विद्वान और आध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने अमृतसर स्थित दरबार साहिब की नींव सूफी संत साई मियां मीर से रखवाई, जो उनके धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को दर्शाता है। उनका प्रभाव देखकर जहांगीर भयभीत हो गया और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को बाध्य करने लगा, परंतु गुरु जी ने धर्म की राह पर अडिग रहते हुए बलिदान दिया।

शंखनाद संस्था के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि गुरु जी ने जात-पात, रंगभेद और ऊंच-नीच का विरोध कर समरसता और भाईचारे का संदेश दिया। वे संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के भी विद्वान था।
ज्ञानी सतनाम सिंह ने अपने प्रवचन में बताया कि गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गुरु रामदास जी और माता बीबी भानी के घर हुआ था। उन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की स्थापना की और गुरुवाणी को संगीतबद्ध रागों में संकलित कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की रचना की। इस ग्रंथ में संत कबीर, रविदास, नामदेव, बाबा फरीद जैसी विभूतियों की वाणियों को भी स्थान मिला।

मानवाधिकार संघ के सदस्य डॉ. आनंद मोहन झा ने व्याख्यानमाला के दौरान कहा कि गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के महान लोकनायक, शांतिप्रिय नेता और धर्म के रक्षक थे।

इस मौके पर त्रिलोक सिंह निषाद की पुस्तक “तेरा किया मीठा लागे, हरनाम पदारथ नानक मांगे” का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम में बिहारशरीफ नगर निगम की महापौर अनिता देवी, तख्त श्री हरिमंदिर साहिब पटना के प्रबंधक दिलीप सिंह पटेल, ग्रंथी भाई सतनाम सिंह, फेडरेशन अध्यक्ष वीर सिंह, सरदार परमजीत सिंह, डॉ. आनंद वर्धन, साहित्यकार धनंजय श्रोत्रिय, श्री नालंदा योग सेवा समिति के महासचिव परमेश्वर कुमार पटेल समेत अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, संत और श्रद्धालु उपस्थित थे।

सेवाएं देने वालों में प्रमुख नाम

धीरज कुमार, नवनीत कृष्ण, योगिंदर सिंह, रविंद्र सिंह, धर्मवीर सिंह, भोला सिंह, हरिनारायण सिंह, सुधा देवी, सुनीता देवी, चंद्रशेखर प्रसाद, जीरा देवी, अमित कुमार, कुंदन कुमार आदि ने सेवा में प्रमुख भूमिका निभाई।

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