नालंदा में मूंग की फसल पर पीली नसों की मोज़ेक बीमारी का कहर

Written by Subhash Rajak

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कृषि वैज्ञानिकों ने बताए मूंग की फसल को बचाने के कारगर उपाय

नूरसराय।सब्ज़ी और दलहन उत्पादन के लिए विख्यात नालंदा ज़िले में इस वर्ष गर्मी और खरीफ मौसम में मूंग की फसल को पीली नसों की मोज़ेक बीमारी (Yellow Vein Mosaic Virus) ने बुरी तरह प्रभावित किया है। कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के अनुसार, मार्च-अप्रैल के दौरान असामान्य नमी और तापमान के कारण माहू (Aphids) की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे इस वायरस का तीव्र प्रसार हुआ।

बीमारी का कारण और फैलाव

यह रोग Yellow Vein Mosaic Virus के कारण होता है, जो पौधों की कोशिकाओं को संक्रमित कर देता है। इसका मुख्य वाहक रस चूसने वाला कीट माहू (Aphid) होता है, जो संक्रमित पौधों से वायरस को स्वस्थ पौधों में फैलाता है। अधिक तापमान (25–35°C) और नमी भरा वातावरण इस कीट के लिए अनुकूल होता है। खेतों में बचे पुराने पौधों के अवशेष और जंगली खरपतवार वायरस के लिए आश्रय स्थल बन जाते हैं। कई बार रोग संक्रमित बीजों से भी फैलता है।

प्रमुख लक्षण

पत्तियों की नसों में पीलापन आना, जो धीरे-धीरे पूरे पत्ते में फैलकर जालीदार आकृति बनाता है।

पत्तियों का सिकुड़ना और छोटा हो जाना।

पौधे की वृद्धि रुक जाना और फूल झड़ जाना।

फल का सूखा, कठोर और छोटा रह जाना।

कुछ पत्तियों पर सफेद या हल्के हरे रंग के धब्बे दिखना।

रोकथाम और नियंत्रण उपाय

संक्रमित पौधों को खेत से तुरंत उखाड़कर नष्ट करें।

पीले स्टिकी ट्रैप (15 प्रति एकड़) लगाकर माहू की निगरानी करें।

माहू नियंत्रण के लिए नीम तेल (2 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें।

आवश्यकता अनुसार इमिडाक्लोप्रिड, थायोमेथॉक्साम, मालाथियॉन, डाइमिथोएट जैसे कीटनाशकों का प्रयोग करें।

लेडीबर्ड बीटल्स और लेसविंग लार्वा जैसे जैविक कीटों का संरक्षण करें।

सदैव प्रमाणित और रोगमुक्त बीज का ही उपयोग करें।

फसल चक्र अपनाएं — मूंग के बाद चना या सोयाबीन जैसी फसलें लगाएं।

वैज्ञानिकों की अपील

कृषि वैज्ञानिकों ने नालंदा जिले के किसानों से अपील की है कि वे अपनी मूंग फसल की नियमित निगरानी करें और किसी भी रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत रोकथाम के उपाय अपनाएं। समय रहते यदि वैज्ञानिक सलाह और उपायों को अपनाया जाए, तो इस गंभीर वायरस से फसल को बचाया जा सकता है और उत्पादन में भारी गिरावट से बचा जा सकता है।

लेखक: संजीव कुमार, अचिन कुमार, चन्द्रशेखर आज़ाद एवं राजीव पद्मभूषण
नालंदा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय।

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