नव नालंदा महाविहार मे ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाएं’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू
अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ। नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय) में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाएं’ विषय पर देशभर से आये विद्वानों ने भारतीय भाषाओं के महत्व और संरक्षण पर गहन चर्चा की। विद्वानों ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है, जो संस्कृत, पालि, प्राकृत, तमिल, अपभ्रंश समेत कई भाषाओं में संरक्षित रही है।
संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्वलन से हुआ। मुख्य अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय के अंतरिम कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने कहा कि भाषा भारतीय संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने कहा कि जो सभ्यताएं अपनी भाषा नहीं बचा पाईं, वे अपने ज्ञान की परंपरा से भी वंचित हो गईं। उन्होंने अंग्रेज़ी के अंधानुकरण पर चिंता जताते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं के पुनरुत्थान से ही पारंपरिक ज्ञान को संजोया जा सकता है।
प्रो. सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि अंग्रेजी केवल एक ‘टूल’ है, लेकिन हमारी भाषाएं ज्ञान की वाहक हैं। उन्होंने इतिहासकार एक नारायण का उदाहरण देते हुए कहा कि वे अंग्रेजी को औज़ार की तरह उपयोग करने की वकालत करते थे, न कि उसकी जगह भारतीय भाषाओं को तिलांजलि देने की।
मुख्य वक्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध विद्वान प्रो. कर्म तेज सिंह सराव ने कहा कि बौद्ध धर्म को केवल पालि भाषा तक सीमित कर देखना अनुचित है। उन्होंने भाषा आधारित प्रपंचों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुवाद कभी भी मूल ग्रंथों का सम्पूर्ण अर्थ नहीं दे सकता। शोधकर्ताओं को मूल भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. राधेश्याम दुबे ने कहा कि रामचरितमानस की अवधी भाषा भी संस्कृत परंपरा से ही जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि हिंदी की ताकत अब अंग्रेजी के समकक्ष हो चली है।
प्रो. विश्वजीत कुमार ने कहा कि “भाषा केवल संप्रेषण नहीं, बल्कि संस्कृति और सभ्यता की संवाहिका है।” उन्होंने नालंदा को बुद्ध और युद्ध दोनों की धरती बताते हुए इसे ज्ञान का ऐतिहासिक केंद्र कहा।
कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि “भविष्य में भाषाओं के विलुप्त होने से भी मानवता को खतरा है।” उन्होंने बताया कि 1600 में 300 भाषाएं समाप्त हो चुकी थीं और आज भी 50 भाषाएं संकट में हैं। उन्होंने अनुवाद को वैश्विक स्तर पर भारतीय भाषाओं के विस्तार का सेतु बताया।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. सुरेश कुमार और संयोजन डॉ. अनुराग शर्मा ने किया। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. हरे कृष्ण तिवारी ने स्वागत भाषण दिया, जबकि कुलसचिव प्रो. रूबी कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।




