अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ। एशिया के पहले और प्रतिष्ठित बौद्ध अध्ययन केंद्र नव नालंदा महाविहार डिम्ड यूनिवर्सिटी में स्थायी कुलसचिव की नियुक्ति आज तक नहीं हो सकी है। वर्ष 2006 में ‘डिम्ड यूनिवर्सिटी’ का दर्जा मिलने के बाद से बीते 19 वर्षों में कुलपति पद के लिए तो नियमित प्रक्रिया अपनाई जाती रही है, लेकिन कुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद को भरने के लिए कभी भी स्थायी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं की गई।
यह विडंबना ही है कि 1951 में स्थापित इस एशियाई स्तर के बौद्ध विद्या केंद्र में आज भी केवल प्रभारी कुलसचिव के माध्यम से प्रशासनिक कार्यों का संचालन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कुलसचिव की जिम्मेदारी आमतौर पर संस्था के ही किसी शिक्षक को अस्थायी रूप से सौंप दी जाती है। इससे न केवल संबंधित शिक्षक की शिक्षण और शोध गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं, बल्कि विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही का भी अभाव देखा जाता है।
सूत्रों के अनुसार, कुलसचिव विश्वविद्यालय का प्रमुख प्रशासक होता है, जो वित्त, परीक्षा, मानव संसाधन, शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक गतिविधियों के संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। ऐसे में जब यह पद वर्षों तक खाली रहता है, तो विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रशासनिक निर्णयों में देरी, योजनाओं का अधर में लटकना, शिक्षकों और छात्रों में असंतोष का माहौल, तथा अकादमिक वातावरण की गिरावट — ये सभी समस्याएं इसी अस्थायी व्यवस्था की देन हैं।
राजगीर अनुमंडल में चार विश्वविद्यालय — नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार खेल विश्वविद्यालय, नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय और नव नालंदा महाविहार स्थित हैं। लेकिन नव नालंदा महाविहार को छोड़कर अन्य सभी विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलसचिव नियुक्त हैं।
पूर्व कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ के कार्यकाल के दौरान तो कुलसचिव की नियुक्ति से जुड़ा मामला हाईकोर्ट तक पहुँच चुका है। इसके बावजूद स्थायी नियुक्ति की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है।
शैक्षणिक जानकारों का मानना है कि जब तक नव नालंदा महाविहार में कुलसचिव पद पर नियमित, योग्य और अनुभवी व्यक्ति की नियुक्ति नहीं की जाती, तब तक विश्वविद्यालय की साख, शैक्षणिक गुणवत्ता और प्रशासनिक स्थिरता को बनाए रखना कठिन होगा।
समय की मांग है कि इस पद पर शीघ्र नियुक्ति की जाए, ताकि संस्थान की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को मजबूती मिल सके और दीर्घकालिक विकास की दिशा में ठोस कद