बिहार की राजनीति में वंशवाद हावी, कार्यकर्ताओं की भूमिका फिर सवालों में

Written by Sanjay Kumar

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बिहारशरीफ (अपना नालंदा)बिहार की राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। लोजपा (रा) के नालंदा जिला उपाध्यक्ष एवं समाजसेवी अजीत कुमार ऊर्फ कक्कू सिंह ने कहा कि प्रदेश की राजनीति आज ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ कार्यकर्ताओं की भूमिका केवल झोला उठाने, नारे लगाने और जिंदाबाद–मुरदाबाद तक सीमित होती जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि किसी कार्यकर्ता का परिवार राजनीतिक रूप से स्थापित नहीं है, उसके पिता किसी पार्टी में अध्यक्ष, सांसद या मंत्री नहीं रहे हैं, तो उसके लिए विधायक, सांसद या मंत्री बनना लगभग असंभव हो चुका है।
अजीत कुमार का कहना है कि बिहार में लोकतंत्र के स्थान पर “राजतंत्र जैसा ढांचा” बन गया है, जहाँ जनाधार और कार्यकर्ताओं की निष्ठा के बजाय परिवारिक पहचान को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बार के चुनाव और सरकार गठन में भी यह स्पष्ट रूप से दिखाई दिया कि कई नेताओं के बेटे बिना संगठनात्मक अनुभव या जनसंघर्ष के सीधे मंत्री बना दिए गए, जबकि वर्षों से पार्टी के लिए मेहनत करने वाले कार्यकर्ता सिर्फ दर्शक बनकर रह गए।

उन्होंने तंज भरे लहज़े में कहा कि “जब कोई नेता कहता है कि मेरा बेटा पढ़ा-लिखा है, इसलिए मंत्री बनना उसका अधिकार है, तो इसका मतलब क्या यह माना जाए कि कार्यकर्ता अनपढ़ हैं? जो कार्यकर्ता वर्षों से संगठन चलाते हैं, बूथ संभालते हैं, जनता के बीच रहते हैं, क्या वे योग्य नहीं हैं?”
अजीत कुमार का कहना है कि बिहार की राजनीति में यह प्रवृत्ति सभी दलों में दिखाई देती है। चाहे वह सत्ताधारी गठबंधन हो या विपक्ष—परिवारवाद अब लगभग हर दल पर हावी होता दिख रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ताओं को केवल चुनाव तक की आवश्यकता समझा जाता है, उसके बाद उन्हें सम्मान या अवसर देने की परंपरा लगभग समाप्त हो गई है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता और कार्यकर्ता सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थिति में दोनों को ही लगातार ठगा जा रहा है। नेताओं की कथनी और करनी में बड़ा अंतर दिखाई देता है। अजीत कुमार ने कहा कि परिवारवाद के मुद्दे पर आज किसी भी बड़े नेता की जुबान नहीं खुल रही। चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ—इस विषय पर सबकी चुप्पी सवाल खड़े करती है।
उन्होंने कहा कि “आज आवश्यकता है कि बिहार की राजनीति में पारदर्शिता आए, योग्य कार्यकर्ताओं को मौका मिले और लोकतंत्र अपनी वास्तविक दिशा में लौटे। जब तक परिवारवाद को खुलकर चुनौती नहीं दी जाएगी, तब तक सच्चे कार्यकर्ता सिर्फ नारे लगाने तक ही सीमित रहेंगे।”
अंत में अजीत कुमार ने कहा कि कार्यकर्ता ही किसी भी राजनीतिक दल की रीढ़ होते हैं और यदि उन्हें सम्मान तथा समान अवसर नहीं मिला, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर होती जाएगी।

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