अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ। चौंकिए मत! यह दृश्य किसी पुराने दौर की नहीं, बल्कि वर्तमान में जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार के शासनकाल की सच्ची तस्वीर है।
गाय के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां सत्ता में तो हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि गौ माता की कोई सुध लेने वाला नहीं है।
शहर के सबसे बड़े मार्केट क्षेत्र मधङा़ कॉम्प्लेक्स के ठीक सामने, लावारिस गायें कूड़े के ढेर से पॉलिथीन में फेंके गए खाने के अवशेषों को खा रही हैं। दुर्भाग्यवश, ये गायें पॉलिथीन सहित भोजन ग्रहण कर रही हैं, जिससे उनकी असमय मृत्यु हो रही है।
नगर निगम भी इन बेसहारा पशुओं की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। इन्हें पकड़ने या सुरक्षित स्थान पर भेजने की जगह इन्हें सड़कों पर यूं ही छोड़ दिया गया है, जिससे ये राहगीरों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इन जानवरों के हमले का शिकार हो रहे हैं। जानकारी के अनुसार, इन जानवरों में कई ‘मरखंड़’ किस्म के भी हैं, जो आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं। न जाने कितने लोगों का अभी तक हाथ, पैर, कमर तोड़ा होगा।
बताया जाता है कि कोरोना आने से कुछ साल पूर्व एक 90 वर्षीय बुजुर्ग यहां से गुजर रहे थे की पीछे से एक लावारिस जानवर ने धक्का मार दिया, उसके बाद बुजुर्ग का इलाज हुआ ,परंतु वह फिर से चल फिर नहीं सके और बेड पर ही मृत्यु हो गई। ऐसी घटनाएं अनगिनत हो चुकी है।
बिहारशरीफ में गौरक्षणी नामक एक स्थल भी मौजूद है, जिसका उद्देश्य लावारिस गायों की देखभाल और संरक्षण है, परंतु वर्तमान में यह स्थान सिर्फ नाम मात्र का रह गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार, गौरक्षणी के बड़े हिस्से पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है और वहां न तो कोई गौ सेवा होती है और न ही किसी जानवर को पनाह दी जाती है।
स्थानीय नागरिकों ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि केंद्र में लगभग 10 वर्षों से पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार है और बिहार में भी 18 वर्षों से सत्ता एक ही धारा में बह रही है, फिर भी गौ माता की स्थिति दयनीय बनी हुई है।
गाय के नाम पर कभी-कभी कई शहरों में हंगामा जरूर खड़ा किया जाता है, लेकिन उनके संरक्षण की ज़िम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता। अब सवाल यह है कि इन बेसहारा और पीड़ित गौ माताओं की रक्षा आखिर कौन करेगा?




