अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ । धर्म क्या है—मंदिर जाना, व्रत रखना, तीर्थ करना या फिर किसी भूखे की थाली भरना? नालंदा जिले के चौर बीघा निवासी समाजसेवी अरविंद कुमार सिन्हा ने इस सवाल का जवाब अपने कर्मों से दिया। उन्होंने यह साबित किया कि इंसानियत आज भी जिंदा है और असली धर्म सेवा में निहित है।
घटना मुंबई के चेंबूर इलाके की है, जहां अरविंद सिन्हा की नजर सड़क किनारे कचरे में भोजन खोजते दर्जनों भूखे बंदरों पर पड़ी। यह दृश्य देखकर उनका मन द्रवित हो उठा। उन्होंने तुरंत पास के बाजार से सैकड़ों दर्जन केले मंगवाए और घंटों तक अपने हाथों से इन बेजुबानों को केला खिलाया। जैसे ही बंदरों को भोजन मिला, उनमें चंचलता और ऊर्जा लौट आई।
यह दृश्य देखकर राहगीर भावुक हो उठे। किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाया तो किसी की आंखें नम हो गईं। अरविंद सिन्हा ने कहा—”अगर आपकी पूजा किसी भूखे की थाली नहीं भर सकती, तो वह केवल एक रस्म है। भूख मिटाना ही सच्चा तीर्थ है।”
परविंदर इंटरप्राइजेज के संचालक और समाज सेवा में लंबे समय से सक्रिय अरविंद सिन्हा न सिर्फ ज़रूरतमंद लोगों की मदद करते हैं, बल्कि बेसहारा पशु-पक्षियों के लिए भी लगातार कार्य करते हैं। उनका मानना है कि—”धर्म मंदिर की दीवारों में नहीं, किसी के आंसू पोंछने और भूख मिटाने में बसता है।”
उनकी इस पहल की स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने खूब सराहना की। लोगों का कहना था कि जब तक समाज में अरविंद जैसे संवेदनशील लोग हैं, करुणा और मानवता कभी खत्म नहीं होगी।




