मोहम्मद जियाउद्दीन
इस्लामपुर (अपना नालंदा)।वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री व्रत भी कहा जाता है, सोमवार को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया। इस अवसर पर विवाहित महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना को लेकर उपवास रखा और वट वृक्ष की पूजा की।
यह व्रत पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री नामक पतिव्रता स्त्री ने अपने दृढ़ संकल्प, तपस्या और प्रेम से यमराज को प्रसन्न कर अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। यह कथा नारी शक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सावित्री एक धर्मपरायण और पतिव्रता स्त्री थी। उसका विवाह सत्यवान नामक युवक से हुआ था, जिसे अल्पायु बताया गया था। एक दिन जब सत्यवान की मृत्यु वट वृक्ष के नीचे हो गई, तो सावित्री ने अपने तप और व्रत की शक्ति से यमराज को प्रभावित कर लिया और उनसे अपने पति के प्राण वापस मांग लिए। यमराज उसकी दृढ़ता और निष्ठा से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवनदान दे देते हैं।
वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष (बड़ का पेड़) का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि सत्यवान की मृत्यु इसी वृक्ष के नीचे हुई थी और वहीं सावित्री ने यमराज से उनका जीवन वापस मांगा था। इसी कारण इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, उसके चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर परिक्रमा करती हैं और अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम, निष्ठा और पारिवारिक एकता का प्रतीक माना जाता है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया।



