नालंदा के होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. बृज मोहन ने ‘गिलियन बैरे सिंड्रोम’ के सफल इलाज का दावा कर रचा इतिहास, नीदरलैंड में शोधपत्र हुआ प्रस्तुत

Written by Sanjay Kumar

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अपना नालंदा संवाददाता
बिहारशरीफ। एक बार फिर भारत, और विशेषकर बिहार के नालंदा जिले ने होमियोपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज की है। जिले के एकंगरसराय प्रखंड अंतर्गत केलाविगहा गाँव निवासी प्रख्यात होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. बृज मोहन प्रसाद ने एक जटिल और दुर्लभ बीमारी गिलियन बैरे सिंड्रोम (GBS) के सफल इलाज का दावा करते हुए अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है।

dr. brij mohan program in neitherland

डॉ. प्रसाद ने हाल ही में नीदरलैंड में आयोजित 78वें विश्व होमियोपैथिक सम्मेलन में इस विषय पर आधारित अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘गिलियन बैरे सिंड्रोम’ पर की गई अपनी गहन क्लिनिकल स्टडी, केस स्टडी और इलाज की प्रक्रिया साझा कीं। उनके अनुसार, बृज होमियोपैथिक रिसर्च सेंटर (बिहार) में इस गंभीर तंत्रिका रोग से पीड़ित अनेक मरीजों को सफलतापूर्वक उपचार प्रदान किया गया है।

डॉ. बृज मोहन ने बताया कि यह बीमारी रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा अपनी ही नसों पर हमला करने के कारण उत्पन्न होती है, जिससे रोगी को अचानक कमजोरी, अंगों में झनझनाहट, चलने में कठिनाई, यहाँ तक कि पक्षाघात जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। कुछ गंभीर मामलों में यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। अभी तक एलोपैथिक चिकित्सा में इसके इलाज के लिए सीमित विकल्प ही उपलब्ध हैं, जो मुख्यतः लक्षणों को नियंत्रित करने और पुनर्वास तक सीमित रहते हैं।

उन्होंने बताया कि उन्होंने वर्षों की मेहनत और सैकड़ों मरीजों के लक्षणों का गहन अध्ययन कर एक प्रभावशाली होमियोपैथिक उपचार पद्धति विकसित की है, जिससे कई मरीज अब पूर्णतः स्वस्थ हो चुके हैं। कुछ मरीज, जो व्हीलचेयर पर निर्भर थे, अब सामान्य रूप से चलने-फिरने में सक्षम हैं। उनका दावा है कि यदि प्रारंभिक अवस्था में सही औषधियाँ दी जाएँ, तो इस बीमारी का संपूर्ण इलाज संभव है।

डॉ. प्रसाद ने कहा कि होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति पर भले ही अकसर सवाल उठते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण और गहन अनुसंधान से यह साबित किया जा सकता है कि होमियोपैथी भी गंभीर और जटिल बीमारियों के इलाज में सक्षम है।

उन्होंने आगे बताया कि उनकी योजना इस शोध को और व्यापक रूप देने तथा भारत सरकार और विभिन्न चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से इस पद्धति को चिकित्सा की मुख्यधारा में शामिल कराने की है।

नालंदा जिले और पूरे बिहार के लिए यह उपलब्धि गौरवपूर्ण है। डॉ. बृज मोहन की यह सफलता सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि भारतीय चिकित्सा विज्ञान के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है। यह उन लाखों मरीजों के लिए आशा की नई किरण है, जो गिलियन बैरे सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।

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