अंधाधुंध रासायनिक खाद के प्रयोग से बिगड़ रही मिट्टी की गुणवत्ता, किसानों को दी गई तरल खाद अपनाने की सलाह

Written by Sanjay Kumar

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विजय प्रकाश उर्फ पिंनु
नूरसराय (अपना नालंदा)। नालंदा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय में चल रहे पंद्रह दिवसीय समेकित पोषण प्रबंधन विषयक प्रशिक्षण का शुक्रवार को समापन हुआ। इस प्रशिक्षण में नालंदा, नवादा, जहानाबाद, वैशाली, सहरसा और पटना जिलों के इनपुट डीलरों ने भाग लिया।

समापन सत्र को संबोधित करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. रणधीर कुमार ने कहा कि आज किसान अंधाधुंध रासायनिक खाद—विशेष रूप से यूरिया और डीएपी—का उपयोग कर रहे हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। यदि समय रहते इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए खेती करना मुश्किल हो जाएगा।

उन्होंने किसानों को सलाह दी कि मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने के लिए हरी खाद जैसे मूंग, ढैंचा, और सनई की खेती करें। साथ ही मिट्टी जांच के आधार पर ही उर्वरक का प्रयोग करें। इससे उपज भी बढ़ेगी और खेती की लागत भी कम होगी।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के नोडल पदाधिकारी डॉ. संतोष चौधरी ने कहा कि आज भी बहुत से किसान धान और गेहूं की फसल के अवशेषों को जलाते हैं, जिससे खेत की उर्वरक क्षमता नष्ट हो जाती है और मिट्टी में मौजूद उपयोगी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे तरल खाद का प्रयोग करें और रासायनिक खाद की मात्रा में कटौती करें, ताकि मृदा स्वास्थ्य बना रहे और लागत में भी कमी आए।

इस अवसर पर पीआरओ और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार, डॉ. मनीष कुमार, कृषि वैज्ञानिक एस. आज़ाद, डॉ. महेश कुमार, डॉ. अजीत कुमार, डॉ. आनंद और डॉ. फातिमा सहित अन्य विशेषज्ञ उपस्थित रहे। सभी ने किसानों को पर्यावरण के अनुकूल कृषि तकनीकों को अपनाने का संदेश दिया।

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